विश्व महिला दिवस पर विशेष इक्कीसवीं सदी में लिखी जाएंगी अनगिनत महिलाओं की प्रेरणादायी गौरव गाथाएं 

 


(शोभा ओझा)


लेखिका कांग्रेस की


राष्ट्रीय प्रवक्ता और मध्यप्रदेश


कांग्रेस मीडिया विभाग की


अध्यक्षा भी हैं


विश्व महिला दिवस है, नारी शक्ति के सम्मान का दिन, सदियों से विश्व की इस आधी आबादी को दुनिया की तमाम पुरुष प्रधान सामाजिक व्यवस्थाओं ने कमतर आंकने की कोशिशें करने के साथ ही, उन पर कई तरह के प्रतिबंध भी थोपने के प्रयास किये, मुझे यह कहने में बिल्कुल भी गुरेज नहीं है। मेरा यह भी मानना है कि केवल रस्म अदायगी के लिए किसी दिवस विशेष को मनाने का भी कोई औचित्य नहीं है, जब तक कि उसके पीछे बराबरी और सम्मान की कोई परिणाम-मूलक सच्ची भावना न हो।इस महिला दिवस के अवसर पर आज हम नारी शक्ति के उन महान आदशों के योगदान के प्रति भी कृतज्ञ हैं, जिन्होंने न केवल वैश्विक प्रगति में अपना बहुमूल्य योगदान दिया बल्कि महिलाओं के प्रति पुरातनवादी सोच को भी पूरी तरह से बदल कर रख दिया है, सिरिमाओ भंडारनायके, मार्गरेट थैचर, श्रीमती इंदिरा गांधी, आंग सान सू की जैसी वैश्विक नेताओं के साथ ही इंदिरा नूयी व किरण मजूमदार शॉ जैसी भारतीय मूल की महिलाओं के ऐसे गौरवशाली उदाहरण हमारे पास मौजूद हैं, जिन्होंने व्यवसाय व प्रबंधन के क्षेत्र में नये कीर्तिमान और मानदंड स्थापित किए हैं। यदि हम भारतीय परिस्थितियों में देखें तो श्रीमती इंदिरा गांधी के रूप में हमें एकमात्र ऐसी प्रधानमंत्री मिलीं, जिन्होंने इस उपमहाद्वीप के इतिहास को ही नहीं बल्कि भूगोल भूगोल को भी बदल कर रख दिया, क्या दुनिया के इतिहास में ऐसा कोई और उदाहरण है? यही नहीं अपनी आंखों के सामने श्रीमती इंदिरा गांधी और राजीव गांधी जैसे अपने परिजनों की शहादत को देखना और उसके बाद प्रधानमंत्री का पद टुकराने का माद्दा केवल श्रीमती सोनिया गांधी जैसी बिरली शख्सियत में ही हो सकता है। राजनीति में त्याग की ऐसी सर्वोच्च भावना की शायद ही कोई दूसरी मिसाल इस दुनिया में कहीं मौजद हो। यहां यह उल्लेखनीय हैकि पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी द्वारा नब्बे के दशक में महिलाओं के लिए तैंतीस " प्रतिशत आरक्षण सुनिश्चित करने का जो प्रयास प्रारंभ हुआ, उस संदर्भ में देश की पूर्ववर्ती यूपीए सरकार ने वर्ष-2010 में, यूपीए की तत्कालीन अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गांधी की मंशानुसार, महिला आरक्षण बिल बिल को राज्यसभा में पास करा लिया था लेकिन तत्कालीन विपक्ष (जो अब केंद्र की सत्ता है) ने अपने सोचे-समझे रणनीतिक विरोध से, उसे लोकसभा में पारित नहीं होने दिया। महिलाओं के प्रति अपनी विचारधारा की उसी पुरानी सोच को कायम रखते हुए, वर्तमान केंद्र सरकार इस बिल के प्रति पूरी तरह से उदासीन नजर आ रही है, उसकी प्राथमिकताओं में महिलाओं, किसानों, युवाओं और बेरोजगारों, किसी के लिए कोई स्थान नहीं है, जाहिर है कि उसके एजेंडे दसरे हैंइन तमाम प्रतिकल परिस्थितियों के बावजद यह सुखद है कि आज के दौर की महिलाएं सभी पुरातनपंथी सामाजिक रूढ़ियों और अव्यावहारिक परंपराओं को तोडते हए, स्वयं को देवी के तौर पर पुजवाना नहीं चाहतीं, बल्कि वे केवल इस बात की अपेक्षा रखती हैंकि उन्हें संविधान में वर्णित समानता के अधिकार से वंचित न किया जाये। सौभाग्य से आज भारतीय समाज में ऐसी कई नायिकाएं मौजूद हैं, जिन्होंने महिलाओं के अरमानों और उनकी उड़ानों को नए पंख दिये हैं। सरोजिनी नायडू, मदर टेरेसा, मृणालिनी साराभाई और पी.टी. ऊषा के गौरवशाली उदाहरणों के बाद एम.सी. मैरीकॉम और गीता फोगट के जीवन और उनके संघर्ष पर बनी फिल्मों ने जहां महिलाओं के मन में आपा एक नए उत्साह का संचार किया है वहीं उन्हें प्रेरित करने के लिए आज भारत में महिला प्रतिभाओं के ऐसे ढेरों जीवंत उदाहरण हैं, जिन्होंने अपनी जिजीविषा और अदम्य इच्छाशक्ति के दम पर कई मान्यताओं को खंडित करने के साथ ही अनेकों नए प्रतिमान गढ़े हैं। हमारे सामने आज महिलाओं के कई ऐसे प्रेरणादायी उदाहरण भी मौजूद हैं, जहां दुष्कर्म और ऐसिड अटैक पीडिताओं ने जिंदगी से हार मानने की बजाय परिस्थितियों से संघर्ष करते हुए, न केवल अन्याय के विरुद्ध अपनी आवाज बुलंद की बल्कि अदम्य साहस का परिचय देते हए, अपनी अलग पहचान भी कायम की है। यह भी सुकूनदायी है कि महिलाओं को लेकर पुरुषों की मानसिकता में भी अब व्यापक बदलाव आ रहा है, शिक्षा का प्रसार और भमंडलीकरण जैसे-जैसे तेज होगा. महिलाओं के प्रति सोच भी बदलेगी और उनका महत्व भी बढ़ेगा, इसमें कोई संदेह नहीं है। बदलाव के इस दौर में हमें भी चाहिए कि हम महिलाओं के प्रति फैली सभी पुरानी भ्रांतियों को दूर करते हुए, देश और दुनिया को यह दिखला दें कि इक्कीसवीं सदी वास्तव में वह सुनहरा युग है, जिसमें महिलाओं की इच्छाशक्ति, साहस, जिजीविषा और कठोर परिश्रम से उनकी उन्नति, तरक्की और नेतृत्व की अनगिनत नई प्रेरणादायक गौरव गाथाएं लिखी जाएंगी।