सियासी उठापटक के चलते बजट खटाई में विधानसभा सत्र नहीं चला तो कर्मचारियों के वेतनभत्ते अटकेंगे अटकेंगे

विशेष संवाददाता,भोपाल। मध्यप्रदेश में जारी राजनीतिक खींचतान के कारण साल- 2020-21 का बजट खटाई में पड़ गया है। विधानसभा का बजट सत्र सुचारु रुप से नहीं चलने से किसी भी तरह का सदन का कामकाज नहीं हो सका है। बजट पेश नहीं होने के चलते एक अप्रैल से सरकार के पास जरूरी खर्च करने के लिए भी बजट नहीं होगा क्योंकि विधानसभा ने 31 मार्च 2020 तक के लिए ही बजट पारित किया है। इस स्थिति में न तो लेखानुदान लाया जा सकता है और न ही अध्यादेश। बताया जा रहा है कि यदि बजट पारित नहीं हुआ तो अधिकारियोंकर्मचारियों के वेतन-भत्ते के साथ पेंशनर्स की पेंशन भी अटक जाएगी। वित्त विभाग के अधिकारियों का कहना है कि मौजूदा बजट 31 मार्च 2020 तक के लिए है। एक अप्रैल से वेतन-भत्ते सहित अन्य जरूरी खर्च के _लिए विधानसभा की मंजूरी जरूरी है। इसके मद्देनजर ही 18 मार्च को सदन में बजट प्रस्तुत करना प्रस्तावित किया गया था। 26 मार्च तक विभागवार चर्चा कराकर इसे विधानसभा से पारित कर राज्यपाल लालजी टंडन को मंजूरी के लिए भेजा जाता। मंजूरी मिलते ही एक अप्रैल के पहले विनियोग विधेयक की अधिसूचना राजपत्र में प्रकाशित कर विभागों को बजट आवंटन कर दिया जाएगा लेकिन प्रस्तावित प्रक्रिया सियासी घटनाक्रम में पूरी होती नजर नहीं आ रही है। बिना चर्चा बजट पारित कराने के लिए गिलोटिन भी लाया जा सकता है पर इसके लिए सदन चलना जरूरी है। 26 मार्च तक विधानसभा की कार्यवाही स्थगित है और इसके बाद भी सामान्य कामकाज हो पाएगा, इसके आसार दूर-दूर तक नहीं है। ऐसे में न तो विनियोग विधेयक लाया जा सकता है और न ही लेखानुदान। विधानसभा चल रही इसलिए अध्यादेश लाना भी संभव नहीं हैऐसी सूरत में वित्त विभाग के पास कोई विकल्प नहीं बचा है। इसके मायने यह हुए कि गतिरोध समाप्त नहीं होता है तो एक अप्रैल से विभागों के पास खर्च के लिए बजट ही नहीं होगा। न तो विभाग अधिकारियों-कर्मचारियों को वेतन-भत्ते मिलेंगे और न ही पेंशनर्स को पेंशन। सरकार ने विभिन्न वित्तीय संस्थाओं और बाजार से जो कर्ज लिया है, उसकी किश्त और ब्याज का भुगतान भी अटक जाएगा। हालांकि, कर्ज सरकार की सिक्योरिटी पर मिलता है, इसलिए इसमें कोई वैधानिक स्थिति तो नहीं बनेगी पर साख प्रभावित होती है। बता दें कि विधानसभा की कार्यवाही 26 मार्च सुबह 11 बजे तक स्थगित कर दी गई है। भाजपा कमलनाथ सरकार के अल्पमत में होने का दावा करते हुए पहले फ्लोर टेस्ट की मांग कर रही है।


राज्यसभा चुनाव: भाजपा का नहीं बदलेगा गणित, सियासी उठापटक के बीच मतदान 26 को


भोपाल । राज्य सभा चुनाव को लेकर प्रदेश की प्रमुख विपक्षी पार्टी भाजपा के गणित में कोई बदलाव नहीं होने वाला है। मौजूदा समीकरण को देखते हुए माना जा रहा है कि भाजपा को मप्र से राज्यसभा की दो सीटें मिलेगी। कांग्रेस को एक सीट से ही संतोष करना पड़ सकता है। आगामी 26 मार्च को राज्यसभा की तीन सीटों के लिए मतदान होना है। दरअसल, कांग्रेस का गणित विधायकों की बगावत के कारण गड़बड़ा गया है। नौ अप्रैल को राज्यसभा की तीन सीटें (दिग्विजय सिंह, प्रभात झा और सत्यनारायण जटिया) कार्यकाल समाप्त होने की वजह से रिक्त हो रही हैं। इनमें दो सीटें भाजपा और एक कांग्रेस के पास थी। विधानसभा में विधायकों की स्थिति को देखें तो अभी प्रभावी मतदाता संख्या 222 है। कांग्रेस के छह विधायकों के इस्तीफे मंजूर हो चुके हैं। पार्टी के 16 बागी विधायक इस्तीफे पर अड़े हुए हैं। इनके इस्तीफे पर फैसला नहीं होता है और वे 26 मार्च को मतदान में हिस्सा नहीं लेते हैं तो विधानसभा में विधायकों की प्रभावी संख्या 206 रह जाएगी। विधानसभा में कांग्रेस के विधायकों की संख्या नए समीकरणों में 92 बचेगी। बसपा, सपा और निर्दलीय विधायकों का समर्थन कांग्रेस भी मिलता हैं तो यह संख्या 99 हो जाएगी। वहीं, भाजपा के एक विधायक नारायण त्रिपाठी बगावत के संकेत दे रहे हैं। वे विधानसभा में 16 मार्च को कांग्रेस विधायकों के साथ देखे गए। त्रिपाठी के कांग्रेस के पक्ष में मतदान करने पर भी विधायकों की संख्या सौ ही होती है। वहीं, भाजपा के विधायकों की संख्या 107 से घटकर 106 रह जाएगी। प्रभावी विधायकों की संख्या 206 होने पर एक सीट जीतने के लिए 52 वोटों की जरूरत होगी, जो भाजपा के पास है।